Saturday, September 17, 2011

मित्र/ मित्रता के बारे में कुछ विचारकों के विचार

*मित्र/ मित्रता के बारे में चाणक्य, सुकरात, अरस्तु जैसे कुछ विचारकों के
विचार- संकलन - विमल खन्डेलवाल *
* मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु हर स्थिति में अच्छा है।
* मित्र पाने की राह है, खुद किसी का मित्र बन जाना।
* मित्रता करने में धैर्य से काम लो। किंतु जब मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और
दृढ़ होकर निभाओ।
* अपने मित्र को एकांत में नसीहत दो, लेकिन प्रशंसा (सही) खुलेआम करो।
* तुम्हारा अपना व्यवहार ही शत्रु अथवा मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है।
* सच्चा मित्र वह है जो दर्पण की तरह तुम्हारे दोषों को तुम्हें दिखाए। जो
तुम्हारे अवगुणों को गुण बताए वह तो खुशामदी है।
* विदेश में विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगी का मित्र
औषधि व मृतक का मित्र धर्म होता है।
* मित्र वे दुर्लभ लोग होते हैं, जो हमारा हालचाल पूछते हैं और उत्तर सुनने को
रुकते भी हैं।
* ज्ञानवान मित्र ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है।
* सच्चे मित्र हीरे की तरह कीमती और दुर्लभ होते हैं, झूठे दोस्त पतझड़ की
पत्तियों की तरह हर कहीं मिल जाते हैं।

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